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तुभ्यं॑ श्चोतन्त्यध्रिगो शचीवः स्तो॒कासो॑ अग्ने॒ मेद॑सो घृ॒तस्य॑। क॒वि॒श॒स्तो बृ॑ह॒ता भा॒नुनागा॑ ह॒व्या जु॑षस्व मेधिर॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tubhyaṁ ścotanty adhrigo śacīvaḥ stokāso agne medaso ghṛtasya | kaviśasto bṛhatā bhānunāgā havyā juṣasva medhira ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तुभ्य॑म्। श्चो॒त॒न्ति॒। अ॒ध्रि॒गो॒ इत्य॑ध्रिऽगो। श॒ची॒ऽवः॒। स्तो॒कासः॑। अ॒ग्ने॒। मेद॑सः। घृ॒तस्य॑। क॒वि॒ऽश॒स्तः। बृ॒ह॒ता। भा॒नुना॑। आ। अ॒गाः॒। ह॒व्या। जु॒ष॒स्व॒। मे॒धि॒र॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:21» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:21» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:2» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अध्रिगो) वेदमन्त्रों के ज्ञाता (शचीवः) प्रशंसनीय बुद्धियुक्त (मेधिर) बुद्धिमान् पुरुष ! (अग्ने) अग्नि के सदृश प्रकाशकारक जो पुरुष (स्तोकासः) उत्तम गुणों की स्तुतिकर्त्ता (मेदसः) चिकने (घृतस्य) घृत का (तुभ्यम्) तेरे लिये (श्चोतन्ति) सेचन करते उनके साथ (कविशस्तः) विद्वानों से प्रशंसित हुआ (बृहता) बड़े (भानुना) तेज से सूर्य के सदृश (आ) (अगाः) प्राप्त हो और (हव्या) देने योग्य वस्तुओं का (जुषस्व) सेवन करो ॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे जल से सींच कर वृक्षों को बढ़ाय फल प्राप्त होते हैं, वैसे ही सत्सङ्ग से सत्पुरुषों का सेवन करके विज्ञान आदि फलों को प्राप्त करें ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह।

अन्वय:

हे अध्रिगो शचीवो मेधिराऽग्ने ! ये स्तोकासो मेदसो घृतस्य तुभ्यं श्चोतन्ति तैः सह कविशस्तस्त्वं बृहता भानुना सूर्य इवागाः हव्या जुषस्व ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तुभ्यम्) (श्चोतन्ति) सिञ्चन्ति (अध्रिगो) योऽध्रीन्मन्त्रान् गच्छति जानाति तत्सम्बुद्धौ (शचीवः) शची प्रशस्ता प्रज्ञा विद्यते यस्य तत्सम्बुद्धौ (स्तोकासः) गुणानां स्तावकाः (अग्ने) अग्निरिव प्रकाशक (मेदसः) स्निग्धस्य (घृतस्य) आज्यस्योदकस्य वा (कविशस्तः) कविभिर्विद्वद्भिः प्रशंसितः (बृहता) महता (भानुना) तेजसा (आ) (अगाः) गच्छेः (हव्या) दातुमर्हाणि वस्तूनि (जुषस्व) सेवस्व (मेधिर) मेधाविन् ॥४॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथोदकेन सिक्त्वा वृक्षान् वर्द्धयित्वा फलानि प्राप्नुवन्ति तथैव सत्सङ्गेन सत्पुरुषान् सेवयित्वा विज्ञानादिफलानि प्राप्नुयुः ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे जलाचे सिंचन केल्यामुळे वृक्षांची वाढ होते व फळे प्राप्त होतात, तसेच सत्संगाने सत्पुरुषांबरोबर राहून विज्ञान इत्यादी फळे प्राप्त करावीत. ॥ ४ ॥